what is P-N junction?? Pn junction diode क्या है???

P-n Junction पड़ने से पहले हमे कुछ जानना होगा  :-



Current फ्लो होने के ऊपर सॉलिड पदार्थ को 3 भागो मे भाग किया जाता है। 

  1. Conductor ( कंडक्टर )
  2. Insulator ( इंसुलेटर )
  3. Semiconductor (सेमीकंडक्टर )

1)  conductor :-

इसके अन्दर करेंट बहुत आसानी से फ्लो होता है । Solid conductor मेनली metal कोही कहा जाता है । मेटल के अंदर फ्री इलेक्ट्रॉन charge carrier के रूपमे काम करता है ।  टेंपरेचर बड़ने के साथ साथ मेटल का resistance भी बडेगा । Ex :- cu , Al , Fe etc  । Conductor मे conduction band और valance band के बीच मे कोइ एनर्जी गैप नही होता। इलेक्ट्रोन फ्रीली valance band से conduction band मे पोहाच सकते है।

2) Insulator :-

इसके अंदर करेंट का फ्लो नही होता । क्योंकि इसके पास कोई free इलेक्ट्रोन नही होता । Ex :- लकड़ी, glass , quartz etc । Valance band और conduction band के बीच बहुत एनजी गैप होता है ।  एहापार कोई चार्ज carrier नही होता ।
एहापर  Eg >3 eV

3) semicondutor :- 

Metal और insulator के बिच मे जो पदार्थ है उसे सेमीकंडक्टर कहा जाता है। करेंट फ्लो के टाइम पर सेमिकंडक्टर के क्रिस्टल मे charge carrier के रूप मे इलेक्ट्रॉन और होल्स रहेता है । Temperature के साथ साथ सेमीकंडक्टर का resistance कम होने लगता है । Ex:- si , Ge । Semiconductor का खासियत ये की ए सभी periodic Table का 14 th group का element है।  इसके बाहर valance shell मे 4 इलेक्ट्रोन रेहता है । valance band और conduction band की बिच एनजी का गैप बहुत कम होता है insulator के तुलना में । 

Ge :-0.67 eV (Eg )
Si :- 1.11 eV ( Eg )
Energy gap


यदि हम 0.67 और 1.11 eV से ज्यादा वोल्टेज हम देंगे तो valance band का इलेक्ट्रान conduction band मे पोहाच जायेगा । pure सेमीकंडक्टर के केस मै जितने इलेक्ट्रान conduction band मे जायेगा उतना holes valance band मे क्रिएट होगा । n=p (n and p is the number density of electron and hole ) 

 Semiconductor को 2 भागो मे भाग किया जाता है

  • Pure semiconductor (intrinsic)
  • Impure semiconductor (Extrinsic)

1) pure semiconductor :- 


एहापे 1 Si atom के इलेक्ट्रॉन के साथ 4 Si atom एक एक इलेक्ट्रान donate करके mutually coavalent bond बनाते है । Germinium के केस मै भी  ऐसाही होता है । ठीक इसी तरह एक एटम अपने 4 इलेक्टन को लेके 4 एटम के bond बनाते है । यानाकी सभी जगाओ पर ही हमे Si या Ge ही मिलेगा।

2) Impure Semiconductor:- 


यही हमारा मैन topic है। एहापार doping किया जाता है । मतलब pure semicondutor मे कुछ अलग तरह की पदार्थ मिलाया जाता है जैसिकी As,P, Al,B । इससे करेंट pure semiconductor के तुलना मे बहुत बड जाता है।

Doping के अनुसार सेमीकंडक्टर दो तरहके होते है.........

  1. n-type semiconductor
  2. P-type semiconductor

1) n-type semiconductor :


Pure Si या Ge की crystal के अंदर कुछ ही मात्रा मे As या P को मिलाया जाता है । दोनो ही periodic table के 15th group का एलिमेंट है । दोनो केही valance shell पर 5 e होता है।

🙂Working principle :-


 आर्सेनिक का atomic no (Z)=33 ।  इसका इलेक्ट्रॉनिक कंफीग्रेशन [Ar]3d¹⁰4s²4p³ । As के अंदर वैलेंस शेल में 5 इलेक्ट्रॉन होता है वह 4 इलेक्ट्रॉन के साथ सिलिकॉन के साथ coavalent bond बनाता है ।  






लेकिन arsenic का एक इलेक्ट्रॉन रह जाता है ।  इसे free electron कहता है । लगभग 10⁶  नंबर  सिलिकॉन एटम के अंदर केवल एक आर्सेनिक या फास्फोरस के एटम को डोपिंग किया तो conductivity बहुत बड जाता है । क्योंकि बस कुछही एनर्जी चाहिए उस free electron  को conduction band में पहुंचने के लिए। क्योंकि वह फ्री इलेक्ट्रॉन पहले से ही कंडक्शन बैंड के बहुत करीब है । उसके पास पहले से ही कुछ एनर्जी भी है । बस कुछ एनर्जी दे तो वह कंडक्शन बैंड में पहुंच जाएगा ।   pure semicondutor  में बॉन्ड को तोड़ना पड़ता है । Impure semiconductor के केस में कोई bond नहीं तोड़ना पड़ता है ।   और ए सिर्फ रूम टेंपरेचर में आने से एनर्जी gain कर लेता है conduction band मे पोहाच ने के लिए ।   और वह जो  एनर्जी है उस energy को Ionisation energy ( 0.01 eV in Ge and 0.05 eV in Si ) कहा जाता है । इलेक्ट्रॉन को हम Donar atom कहते हैं । और इसका और एक नाम है Donar impurity । बहुती ज्यादा कम इलेक्ट्रॉन Si-Si या Ge-Ge covalent bond तोड़के भी आता है। इसकी बजाए से hole भी होंगे। पर no of hole=no of electron। लेकिन overall electron ही ज्यादा होंगे।

Energy band for n type :-



यहां पर मेजोरिटी चार्ज करियर है Negative charges और माइनोरिटी चार्ज करियर है holes । इसलिए इसको न टाइप सेमीकंडक्टर कहा जाता है ।  वैसे तो यह न्यूट्रल है । क्योंकि फास्फोरस के पास जो एक्स्ट्रा इलेक्ट्रॉन है ,  तो  एक्स्ट्रा प्रोटॉन भी तो है। मतलब phosphorus = 15 proton + 15 electron तो है। यानी की क्रिस्टल के अंदर फास्फोरस भी तो न्यूट्रल है । एक्चुअल में इसमें कोई चार्ज नहीं होता। इसीलिए तो इसको इन टाइप कहते हैं ।

2) P -Type semicondutor:-

जब हम trivalent impurity atoms add करते है तब p type semiconductor बनता है । जैसीकी Al, B । जो हमारा 13 th group का एलिमेंट है । उसके valance shell मे 3 इलेक्ट्रोन होता है ।




🙂Working Principle:-

Al का atomic no =13 । इसका electronic configuration [Ne]3s²3p¹ । सिलिकॉन के तीन इलेक्ट्रॉन के साथ अल्युमिनियम  bond बना लेते है । पर सिलिकॉन का एक इलेक्ट्रॉन रहे जाता है जो bond नही बना पाता है । तो Al पर एक hole क्रिएट होता है । 

अगर अप क्रिस्टल को थोड़ी सी एनर्जी दे दो तो अगल बगल का कोई इलेक्ट्रान jump करके hole मे आ जायेगा। मानलो हमने इधर पर एक इलेक्ट्रिक फील्ड दे दी । तो जिस तरफ इलेक्ट्रिक फील्ड है उसके ऑपोजिट डायरेक्शन पर इलेक्ट्रॉन मोशन करेगा । तो इलेक्ट्रॉन जाना तो चाहता है इलेक्ट्रिक फील्ड का अपोजिट direction पर लेकिन bond  से जुड़ा हुआ है इलेक्ट्रान । बस थोड़ी सी एनर्जी दे तो bond का एक इलेक्ट्रॉन उस  होल् मे  आ जाएगा और hole कन्वर्ट हो जाएगा bond मे । यहां पर बोंड टूट नही रहा । जो एनर्जी रिक्वायर्ड वह हमे  रूम टेंपरेचर पर मिल जाएगा ।  और जो hole है वह कंडक्शन बैंड मे availaible होगा । Trivalent impurity neighbouring atom से इलेक्ट्रॉन को एक्सेप्ट करता है और इसीलिए इसे Acceptor Impurity भी कहा जाता है । इसके अलावा कुछ कुछ coavalent bond भी break होंगे ।  equal no of hole and electron generate करेगा । पर ओवरऑल हॉल ही ज्यादा होंगे ।

Energy band for p type:-

Energy band


यहां पर मेजोरिटी चार्ज कैरियर होल्स  है और माइनॉरिटी चार्ज कैरियर इलेक्ट्रॉन । इसीलिए इसे p Type semiconductor कहते है। ए भी neutral ही है । ठीक क्योंकि यहां पर भी जितने इलेक्ट्रॉन होंगे उतने प्रोटॉन भी होंगे मतलब होल्स भी होंगे ।

 🙂 P-n junction diode 🙂


 

Intruduction:-

पीएन जंक्शन डायोड एक तरफ करंट को allow करता है और दूसरी तरफ रोक देता है । अगर कंडक्टर को आप कंसीडर करें तो करंट को दोनों तरफ से flow करने देते हैं । जब आप इंसुलेटर पर बात करते हैं तो दोनों तरफ ही रोक देता है ।  तो इसका बेसिक फंक्शन है करंट के फ्लो एक fixed direction मे रोक देना ।

जब भी p-type semiconductor को n-type semiconductor से मिलाया जाता है तभी पीएन जंक्शन डायोड बनता है । अब देखते है ए कैसे काम करता है..........

Method :-

  यह जो इंप्योरिटी मिलाने का तरीका है वह अलग-अलग होते हैं कभी कभार n टाइम matterial  vapour phase मै लिया जाता है और पी टाइप पदार्थ को doped किया जाता है और vice versa ।

हम जानते है p -type सेमीकंडक्टर मे  मेजोरिटी चार्ज कैरियर होल्स है और n टाइप सेमीकंडक्टर में इलेक्ट्रॉन। यह दोनो  जहा पर joint होते है उसे Junction कहता है । तो एक साइड इलेक्ट्रॉन और दूसरे साइड पर होलस । इलेक्ट्रोन की tendency है it will move towards the positive nature यानकी holes की तरफ ( it's not positive charge , it's behave like a positive charge ) । और holes को diffuse करेगा । This process is called Diffusion process । And when a electron move we are all know there is some current and this current is called Diffusion Current। But ए जो डिफ्यूजन करंट है इससे कन्वेंशनल करंट से कोई लेना देना नहीं है क्योंकि ये जो करेंट है वोह generate होगा ओर चला जायेगा । After this process  junction कुछ एसा दिखता है । 




यहां पर एक question है की फर्स्ट ईयर का इलेक्ट्रॉन चला जाता है ,  तो सेकंड लेयर के इलेक्ट्रॉन क्यों नहीं जाता🤔🤔

 इसका answer है they are more distance ।

क्या हम Depletion layer को short कर सकते हैं........??

Yes । अगर हम impurity को बढ़ा दे तो इलेक्ट्रॉन और होल्स का concentration बहूत बढ़ जाता है । दोनों बहुत करीब आ जाता है इसकी वजह से रिपल्शन फोर्स यानी की इलेक्ट्रॉन इलेक्ट्रॉन और होल्स होल्स के बीच होने लगता है और दोनों ही रिपल्शन फोर्स  एक दूसरे का अपोजिट है तो इसीलिए लेयर भी काम हो जाएगा । 

हम जानते हैं कोई भी बॉडी से charge जब निकाल जाता है तो Q=+ne के according positive होता है and accept some charge body became negative  according to Q=-ne । और इसकी वजह से इलेक्ट्रिक फील्ड create होता है । और दुसरे लेयर के इलेक्ट्रॉन negative ions के कारण और होल्स पॉजिटिव ions ke कारण नही जा पता । इसीलिए कुछ लेयर्स कही इलेक्ट्रॉन होल्स को neutral करता है ।


Distance=d
E.F = E
Now , V=Ed

यह जो पोटेंशियल डिफरेंस है यह charge को support नही करता । जबकि जो बैटरी का पोटेंशियल डिफरेंस है वह हमेशा चार्ज को सपोर्ट करता है । But this potential difference opposes the charges । तो यह जो पोटेंशियल है एक Barrier की तरह काम कर रहा है इसलिए ऐसे potential Barrier कहा जाता है।  

सिलिकॉन के केस में इस potential barrier 0.7 V  और Germinium की केस मे 0.3V  । अगर हम इस  पोटेंशियल से ज्यादा हम वोल्टेज देंगे तभी करंट इस पीएन जंक्शन के अंदर से होकर बैटरी तक पोहेचेगा नहीं तो हो नहीं होगा ।  और एक बाद pn junction diode का एक फिक्स्ड  डायरेक्शन है उसे डायरेक्शन पर ही करंट फ्लो होगा । जिसे हम Forward Bias कहते है ।

Symbol:- 



P-n junction Diode 

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