Important key
Introduction:-
ट्रांसफ़ॉर्मर विज्ञान और इंजीनियरिंग में एक महत्वपूर्ण उपकरण है जो विभिन्न विधियों में विद्युत ऊर्जा को परिवर्तित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह डिवाइस करंट के संचार और वितरण प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम जानेंगे कि ट्रांसफ़ॉर्मर क्या है, और इसका काम कैसे होता है , कितने प्रकार का ट्रांसफॉर्मर होता है , कैसे काम करता है , कहा कहा उपयोग होता है इसका , ए सब बाते।
What is a Transformer? (ट्रांसफ़ॉर्मर क्या है?)
ट्रांसफ़ॉर्मर एक electric डिवाइस है जो इलेक्ट्रीकल एनर्जी को एक स्थान से दूसरे स्थान पर बदलता है, बिना किसी ऊर्जा के नुकसान किए । इसका मैन पर्पस है की हाई वोल्टेज को low voltage मे या low वोल्टेज को high वोल्टेज मे ट्रांसफॉर्म करना ।
Low to High :- step up transformer
High to Low :- step Down Transformer
Structure (गठन):-
पहले हम बात करते हैं ,
Transformer मे एक soft iron core रहेता है जो सॉफ्ट आईरन से बनता है जिसमे वायर का वाइंडिंग होता है । वोह जो वायर है वोह बीसीकली कॉपर का बाना होता है ।Core को है वोह सॉफ्ट आयरन से बनता है । सॉफ्ट आईरन इस तरह का आयरन का पदार्थ होता है कि बहुत जल्दी magnitised हो सकते हैं और बहुत सारे एनर्जी लॉजिंग प्रॉपर्टी जैसे की stresses यह सब होता है । जिसके कारण इस्का एफिशिएंसी बहुत ज्यादा होता है। सॉफ्ट आईरन का एक उदाहरण होता है सिलिकॉन स्टील ।
🔶 तो , सॉफ्ट आईरन कोर में दो तरह का वाइंडिंग होता है एक प्रायमरी कोयल के तौर पर दूसरा सेकेंडरी कोयल के तौर पर ।
How does it work? (कैसे काम करता है?)
चलो जानते हैं ट्रांसफार्मर कैसे काम करते हैं ।
🔶हम पहली बात कर चुके हैं ट्रांसफर में दो कोयल है एक प्राइमरी कोयल और एक सेकेंडरी कोयल । कबी कभी प्रायमरी कोयल मै no of turns (Np) सेकेंडरी कोयल से ज़्यादा होते है और कबी कबी सेकेंडरी कोयल मै no of turns (Ns) प्रायमरी कोयल से ज्यादा होते है । जब प्राइमरी कोयल में वोल्टेज दिया जाता है एसी सोर्स के दौरान (Vp) । तब उस कोयल मै करेंट जेनरेट होगा। इसके कारण कोयल मै चारो ओर एक Magnetic Field तैयार होगा । तो ये जो मैग्नेटिक फील्ड एहपर बन रहा है , इस फील्ड के कारण Magnetic Flux (Φ) बनेगा।
🔶हम जानते है जो वोल्टेज हम एसी सोर्स पा रहे हैं वह वेरिएबल नेचर का है ।
V=V0 Sin ωt और इसके कारण करेंट भी समय समय पर एकही मन नही रहेगा । और करंट चेंज होगा तो मैग्नेटिक फील्ड भी चेंज होगा । और मैग्नेटिक फील्ड चेंज होने के कारण flux भी एक नहीं रहेगा । इसके कारण हम जानते हैं प्राइमरी कोयल एक बैक emf बनेगा (€P) ।
According to farady's law of induction,
€P = - Np (dΦ/dt) [ dΦ= magnetic flux per turn dt = time ]
अप जो इंड्यूस्ड ईएमएफ है और सोर्स वोल्टेज है वोह करीब करीब एकही होगा । क्योंकि क्योंकि हम जो वायर उसे करते हैं उसका रेजिस्टेंस लकवक जीरो होता है ।
Vp = -Np (df/dt)...........(1)
हम जानते हैं प्राइमरी कॉलेज कोयल के flux के कारण सेकेंडरी कोयल में भी एक इंड्यूस्ड ईएमएफ होगा और उसका मां होगा
€s = - Ns (df/dt)
Vs= -Ns (df/dt)..........(2)
[Now, (1) devided by (2)]
Vp/Vs = Np/Ns
Vp/Vs=Np/Ns=Vi/Vo
इस formula से यह स्पष्ट होता है कि प्राइमरी वोल्टेज के दिए गए मान के लिए, प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग के फेरों की संख्या का मां बराके, हम द्वितीयक वाइंडिंग में ज्यादा वोल्टेज पा सकते है । जब सेकेंडरी वाइंडिंग का प्राइमरी वाइंडिंग के वॉल्टेज से अधिक होता है, तो ऐसे ट्रांसफार्मर को स्टेप-अप ट्रांसफार्मर कहा जाता है। इसके विपरीत, जब सेकेंडरी वाइंडिंग का वॉल्टेज प्राथमिक वाइंडिंग के वॉल्टेज से कम होता है, तो ऐसे ट्रांसफार्मर को स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर कहा जाता है।
मां लेते है एक ideal transformer (100%) है उस केस मे................
Pi=Po
€PIP=€SIS
So, if we increase the voltage, current will be decreased and vice versa
⏹️ COMBINED FORMULA
€p /€s= NP/NS =IP/IS
Types of transformer( ट्रांसफॉर्म का प्रकार) :-
🟠गठन के अनुसार ट्रांसफार्मर को 2 भागों में भाग किया जाता है ...
1. Core type Transformer
2. Shell type Transformer
1. Core type Transformer:-
कोर प्रकार के ट्रांसफार्मर में, वाइंडिंग को आमतौर पर एक लेमिनेटेड कोर के चारों ओर लपेटा जाता है, जो वाइंडिंग के माध्यम से बहने वाली Ac voltage द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र को निर्देशित और केंद्रित करने में मदद करता है।।
2. Shell Type Transformer:-
शैल टाइप ट्रांसफार्मरों के कोर को E टाइप के कोर से बनाया जाता है। इसके प्राइमरी तथा सेकण्ड्री वाइंडिंग को अलग करके सैंडविच की तरह रखा जाता है। इसकी वाइंडिग बाहरी कोर से ढकी होती है। इसकी वाइंडिंग केन्द्रीय पाद (central limb) पर की जाती है। इनमें दो चुम्बकीय परिपथ होते हैं। इसलिए इसे शैल टाइप कहते हैं।
🟠कार्य के आधार पर ट्रांसफार्मरों के प्रकार
1.Step up :
वह ट्रांसफार्मर जो प्राथमिक वोल्टेज को बढ़ाकर लोड की तरफ सप्लाई देता है, इसे स्टेप अप ट्रांसफार्मर कहलाता है या दूसरे शब्दों में वह ट्रांसफार्मर जो low volt को high वोल्टेज परिवर्तित करता है, Step-up Transformer कहलाता है। इनका उपयोग पावर जनरेटर और पावर ग्रिड के बीच किया जाता है। आउटपुट वोल्टेज इनपुट वोल्टेज से अधिक होता है।
2.Step down:
इन ट्रांसफार्मर का उपयोग उच्च-वोल्टेज प्राथमिक आपूर्ति को कम-वोल्टेज माध्यमिक आउटपुट में परिवर्तित करने के लिए किया जाता है। एक ट्रांसफार्मर जो primary winding से secondary winding के बीच voltage को घटाता है, उसे step – down transformer कहते हैं। इसमें secondary winding, primary winding से कम होती है।
🟠 करेंट सप्लाई के अनुसर ट्रांसफॉर्मर को 2 भागो मे भाग किया जाता है
1. Single phase Transformer
3. Three phase Transformer
1. Single phase Transformer:-एकल-चरण ट्रांसफार्मर में आमतौर पर दो वाइंडिंग होती हैं - प्राथमिक वाइंडिंग और द्वितीयक वाइंडिंग - एक सामान्य चुंबकीय कोर के चारों ओर लपेटी जाती हैं। ऊर्जा हानि को कम करने और चुंबकीय प्रवाह युग्मन को बढ़ाने के लिए कोर अक्सर लेमिनेटेड सिलिकॉन स्टील से बना होता है। दोनों वाइंडिंग्स को विद्युत रिसाव को रोकने के लिए इंसुलेटेड किया गया है और कुशल ऊर्जा हस्तांतरण के लिए चुंबकीय युग्मन को अनुकूलित करने के लिए व्यवस्थित किया गया है।
3. Three phase Transformer:-तीन-चरण ट्रांसफार्मर तीन-चरण बिजली प्रणालियों में एक महत्वपूर्ण घटक है, जिसे बड़े बिजली भार को कुशलतापूर्वक संभालने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसके अतिरिक्त, तीन-चरण ट्रांसफार्मर अधिक स्थिर और निरंतर बिजली प्रवाह का समर्थन करते हैं, जो भारी मशीनरी और बड़े पैमाने पर विद्युत अनुप्रयोगों के लिए आवश्यक है।
🔶इसके इलावा और कही सारे ट्रांसफार्मर होते है ।8
🟤Power Transformer: पावर ट्रांसफार्मर शायद सबसे आम प्रकार हैं, जिनका व्यापक रूप से इलेक्रिकल एनर्जी को सप्लाई किया जाता है। वे लंबी दूरी पर कुशल बिजली हस्तांतरण की सुविधा के लिए वोल्टेज स्तर को बढ़ाते या घटाते हैं। ये ट्रांसफार्मर सबस्टेशनों में पाए जा सकते हैं, जो उपभोक्ता के उपयोग के लिए उपयुक्त उच्च-वोल्टेज बिजली को कम वोल्टेज में परिवर्तित करते हैं।
🟤Distribution Transformers: वितरण ट्रांसफार्मर, जैसा कि नाम से पता चलता है, मुख्य रूप से ट्रांसमिशन लाइनों से उपभोक्ताओं तक विद्युत शक्ति वितरित करने के लिए उपयोग किया जाता है। वे बिजली ट्रांसफार्मर की तुलना में कम वोल्टेज स्तर पर काम करते हैं । और आमतौर पर उपयोगिता खंभों पर या पड़ोस में कंक्रीट पैड पर स्थापित देखे जाते हैं। ये ट्रांसफार्मर घरों और व्यवसायों को सुरक्षित और कुशलता से बिजली पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
🟤Instrument Transformers: दो मुख्य प्रकार हैं: संभावित ट्रांसफार्मर (पीटी) और वर्तमान ट्रांसफार्मर (सीटी)।
पीटी माप के लिए उच्च वोल्टेज को एक सुरक्षित स्तर तक नीचे ले जाते हैं, जबकि सीटी उच्च धारा को एक प्रबंधनीय स्तर तक नीचे ले जाते हैं। उपकरण ट्रांसफार्मर का उपयोग आमतौर पर बिजली प्रणालियों में मीटरिंग, सुरक्षा और नियंत्रण अनुप्रयोगों में किया जाता है।
🟤Isolation Transformers: आइसोलेशन ट्रांसफार्मर का उपयोग विद्युत सर्किट को एक दूसरे से अलग करने और एसी सिग्नलों को गुजरने की अनुमति देते हुए डीसी करंट के पारित होने को रोकने के लिए किया जाता है। इनका उपयोग आमतौर पर संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में बिजली के शोर, वोल्टेज स्पाइक्स और ग्राउंड लूप से बचाने के लिए किया जाता है। आइसोलेशन ट्रांसफार्मर का उपयोग मेडिकल instrument, ऑडियो सिस्टम और दूरसंचार में भी किया जाता है।
🟤Auto transformers: ऑटोट्रांसफॉर्मर नॉर्मल ट्रांसफार्मर से इस मायने में अलग होते हैं कि वे प्रायमरी और सेकेंडरी दोनों के लिए एक कॉमन वाइंडिंग साझा करते हैं। इस डिज़ाइन के परिणामस्वरूप लागत बचत होती है और नोर्मल ट्रांसफार्मर की तुलना में आकार कम होता है। ऑटोट्रांसफॉर्मर का उपयोग अक्सर वोल्टेज विनियमन, बड़ी मोटरों को शुरू करने और विद्युत प्रणालियों में वोल्टेज स्तर को समायोजित करने के लिए किया जाता है।
Energy loss in transformer (ऊर्जा का लॉस):-
जनरली कोई भी ट्रांसफार्मर एक आइडियल ट्रांसफॉर्मर नहीं होता सभी ट्रांसफर में कुछ ना कुछ एनर्जी का लॉस होता है । आउटपुट जो पावर है वह सभी क्षेत्र में इनपुट पावर के तुलना में कुछ कम होता है । उसका कारण है कि.....
1) copper loss :- हम जो कॉपर का तार उसे कर रहे हैं उसका कुछ ना कुछ रेजिस्टेंस होगा और जब तार में से करंट फ्लो होगा उसे रेजिस्टेंस के कारण कुछ हिट जनरेट होगा (E=i²Rt ) । और हिट के फॉर्म में एनर्जी का लॉस होगा । इसको दूर करने के लिए जो तार होता है वह बहुत ही पतला किया जाता है और जिस तरफ ज्यादा करंट हो सिर्फ उसी तरफ ही तार को पतला किया जाता है । इससे पैसा भी बचता है और एनर्जी का लॉस बहुत कम होता है ।
2) Hysteresis loss:-हम जानते हैं अल्टरनेटिंग करंट बार-बार उसका डायरेक्शन चेंज करता है इसकी वजह से मैग्नेटिक फील्ड का भी डायरेक्शन हर बार बदल जायेगा । और हमने जो सॉफ्ट iron Core यूज किया है तो एक बार मैग्निटाइज्ड होगा और फिर एक बार demagnitised होगा और चलता ही रहेगा ऐसे । और इसके कारण एनर्जी का लॉस होगा इन द फॉर्म ऑफ hysteresis effect ।
🔶इस एनर्जी लॉस को रोकने के लिए हम यूज करते हैं सॉफ्ट आईरन को । इसका जो hysteresis curve होता है उसका एरिया बाकी मेटल से कम होता है । Pic
3) Magnetic flux leackage:- प्राइमरी कोयल के कारण जो फ्लक्स होता है वह पूरी तरीके से सेकेंडरी कोयल को कट नहीं करता कुछ कुछ फ्लक्स लाइंस फ्लेक्स लाइंस बाहर निकल जाता है और इसके कारण कुछ एनर्जी का लॉस भी होता है इसको ठीक करने के लिए प्राइमरी और सेकेंडरी कोयल के अंदर आयरन का सॉलिड कोर उसे किया जाता है ।
4) iron loss:-प्राइमरी और सेकेंडरी कोयल के अंदर आयरन का कोर उसे किया जाता है । इस कोर में eddy current के दौरान कुछ हिट के फॉर्म में एनर्जी का लॉस होता है । इसलिए आयरन कोर को लेमिनेट किया जाता है ।
Applications of Transformers (ट्रांसफ़ॉर्मर का उपयोग):
Communication: ट्रांसफ़ॉर्मर विभिन्न विद्युत उपकरणों को विद्युत शक्ति प्रदान करने के लिए प्रयोग किया जाता है, जैसे कि स्टेप-अप और स्टेप-डाउन ट्रांसफ़ॉर्मर।
Industrial uses: ट्रांसफ़ॉर्मर उद्योग में उपयोग होता है जैसे कि उच्च वोल्टेज पावर सप्लाई और विद्युत मोटरों के लिए।
Home Uses: घरों में भी ट्रांसफ़ॉर्मर का उपयोग होता है, जैसे कि इन्वर्टर्स और उपकरणों को चालू करने के लिए।
Conclusion:-
ट्रांसफ़ॉर्मर एक महत्वपूर्ण विद्युत उपकरण है जो हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में बहुत सारे क्षेत्रों में उपयोग होता है। इसकी समझ हमें हमारे विद्युत संचार और उपयोग के क्षेत्र में अधिक जागरूक बनात
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